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देवी भागवत पुराण हिंदी PDF Download Devi Bhagwat Puran Hindi:
हिन्दू धर्म ग्रन्थ लिस्ट में देवी
भागवत पुराण भी शामिल है इस पुराण को भी
अठ्ठारह महापुराण में से एक माना जाता
है बहुत से भक्त इस पुराण को महापुराण न
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देवी भागवत पुराण हिंदी PDF Download Devi Bhagwat Puran Hindi: हिन्दू धर्म ग्रन्थ लिस्ट में देवी भागवत पुराण भी शामिल है इस पुराण को भी अठ्ठारह महापुराण में से एक माना जाता है बहुत से भक्त इस पुराण को महापुराण न मानकर देवी पुराण मानते है अगर श्रीमद् देवी भागवत महापुराण संस्कृत-हिंदी पीडीऍफ़ डाउनलोड करना चाहते है तो इस लेख के अंत में डाउनलोड लिंक शेयर किया गया है
देवी भागवत पुराण हिंदी – देवी भागवत पुराण गीता प्रेस PDF DOWNLOAD
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हिन्दू धर्म में से एक धर्म ग्रन्थ देवी भागवत पुराण है
बहुत से सनातन धर्म के लोग इस ग्रन्थ को पुराण न मानकर देवी भागवत मानते है
देवी भागवत पुराण में भगवन श्री कृष्ण को देवों के देव के रूप में बताया गया है
श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में अठ्ठारह हजार संस्कृत श्लोक है
इन श्लोक में मोक्ष प्रदान करने वाली- भक्ति, ज्ञान, तथा वैराग्य इत्यादि की जानकारी दी गई है
देवीभागवतं नाम पुराणं परमोत्तमम् ।
त्रैलोक्यजननी साक्षाद् गीयते यत्र शाश्वती ॥
श्रीमद्भागवतं यस्तु पठेद्वा शृणुयादपि।
श्लोकार्थं श्लोकपादं वा स याति परमां गतिम् ॥
श्रीमद्देवीभागवत नामक पुराण सभी पुराणों में अतिश्रेष्ठ है, जिसमें तीनों लोकों की जननी साक्षात् सनातनी भगवतीकी महिमा गायी गयी है। जो श्रीमद्देवीभागवत के आधे श्लोक या चौथाई श्लोक को भी प्रतिदिन सुनता या पढ़ता है, वह परमगति को प्राप्त होता है।
श्रीमद्देवीभागवत के नवानकी विधि है। दोनों नवरात्रों में तथा आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ एवं फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से नवमीतक इसके अनुष्ठानका विधान है।
इसे ‘नवाहयज्ञ’ कहा जाता है। एतदर्थ कथा-स्थानकी भूमि का संशोधन, मार्जन-लेपनादिकर कदली-स्तम्भादिसे मण्डित मण्डप बनाना चाहिये।
मण्डपका स्थान शुभ तथा बराबर होना चाहिये। उसका मान १६ हाथ लम्बा चौड़ा हो तथा उसे तोरण, विमान एवं ध्वजा-पताकासे मण्डित किया जाय।
मण्डपके बीच में चार हाथ लम्बी-चौड़ी च तथा एक हाथ ऊँची वेदी होनी चाहिये।
फिर प्रतिपद्को तु प्रातः उठकर हृदय या शिरोदेशमें उज्वल-पद्मके अ अन्तर्गत गुरुका ध्यान करना चाहिये।
फिर शिखा के दे बीच इस रूपमें देवीका ध्यान करना चाहिये-
प्रकाशमानां प्रथमे प्रयाणे
स्त प्रतिप्रयाणेऽप्यमृतायमानाम्अ
न्तः पदव्यामनुसंचरन्ती-
मानन्दरूपामबलां प्रपद्ये ॥
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